Thursday 26 April, 2018

जाने कब
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जाने  कब
बदलेगी लोगो
की ये मानसिकता
की स्त्री वस्तु
नही है
भोग की
वो है
इक इंसान
उसमे भी जान है
वो भी सांस लेती है
हँसती है
रोती है
उसके भी
कुछ सपने
कुछ अरमान है
हमे करना
जिनका सम्मान है
उसे देना होगा
ऐसा आसमान
जिससे वो
पूरा कर सके
सपने सपनो
का जहान
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गरिमा
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जाने कब
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जाने  कब
बदलेगी लोगो
की ये मानसिकता
की स्त्री वस्तु
नही है
भोग की
वो है
इक इंसान
उसमे भी जान है
वो भी सांस लेती है
हँसती है
रोती है
उसके भी
कुछ सपने
कुछ अरमान है
हमे करना
जिनका सम्मान है
उसे देना होगा
ऐसा आसमान
जिससे वो
पूरा कर सके
सपने सपनो
का जहान
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गरिमा
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Ekakipan


एकाकीपन

अब नही भाती हैं
मुझे भीड़ भाड़
अक्सर भीड़ में
मुझे अकेलेपन का
एहसास होता है
जो मुझे ना
जीने देता है
नजे मरने देता हैं
हा मुझे भाने लगा है
एकाकीपन
जिसमें मिलने लगा है
मुझे अपना पन
तुम्हारी यादों
में ऐसे खोया
रहता हूँ
पता ही नही चलता कब
सुबह होती है
कब शाम होती है
कब दिन ढल जाता है
कब रात हो जाती है
इससे बाहर आने का दिल नही
होता है
बस लगता है
ये वक्त कभी न बीते.....

गरिमा
डिण्डोरी

Thursday 31 August, 2017

तुम्हारे दर्द के
बिखरे शूलों को
तुम समेट लो
अपने आप में
बाहर मत
निकलने दो
निकलेगे जैसे
बाहर चुभ चुभ कर
कर देंगे
लहूलुहान
आप हो जायेंगे
हैरान परेशान
गरिमा
वो एक प्यारा सा बच्चा है
क्या कहूँ कितना  अच्छा है
भोला सा प्यारा सा
दिल का कितना सच्चा है
वो मेरे दिल का हिस्सा है
जिसके संग बनता मेरे
जीवन का हर पल किस्सा है
वो भाई मेरा कितना अच्छा है
हमारी ज्यादा बात नही हो पाती
जिंदगी की दौड़ भाग में
फिर हमारे रिश्ते का एहसास
इतना गहरा है की एक की
चोट में दूसरा तड़प उठता है
ऐसा ही प्यार से भरा प्यारा
सा हमारा रिश्ता है
दुनियां में सबसे प्याराभाई मेरा है
गरिमा

अपने आपको सदा ही नायाब लिख
हो सके तो जिंदगी को ख्वाब लिख

जिंदगी तो रिश्तों से ही चलती रही
कुछ वक्त तू अपना अहबाव लिख

ख़ुशी और गम हिस्सा है जिंदगी का
हर पल तू होंठो पे शादाब लिख

दर्द हर किसी का गहरा यहाँ पर
आँखों में ही तू दर्द का गिर्दाब लिख

इल्म तो सबको होता है झूठ का
तू आगे आकर सच का सैलाब लिख


गरिमा

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जब से
दुनियां में
जन्म लिया
यही सुनते सुनते
बड़ी हुई हूँ
की हम
पुरुष प्रधान
समाज में रहते है
कितनी भी की जाये
बराबरी  बातें
लेकिन लड़कियों
को कुछ करने की
कहने की आजादी नही
वो हो कितनी भी
काबिल
रहती है
एक लछमण रेखा के अंदर
जैसे ही पड़ते है कदम
इस रेखा से बाहर
लहूलुहान हुए हम
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गरिमा